सूर्य धनु राशि से जब मकर राशि में प्रवेश करता है तो मकर संक्रांति का यह दिन धार्मिक एवं सामाजिक महत्व के पर्व ‘खिचड़ी’ के रूप में मनाया जाता है। खिचड़ी खाने व दान देने की परंपरा से जुड़ा यह दिन सर्दी की ठिठुरन से बसंत ऋतु की गर्मी की ओर यात्रा का भी प्रतीक माना जाता है। यही नहीं बल्कि इस दिन से बड़ी होती रातों के विपरीत बड़े दिनों का क्रम प्रारम्भ होता है।
परम्परा…
एक माह के खरमास के बाद शुभ कार्यो के प्राम्भ होने वाले इस दिन स्नान-ध्यान के साथ सूर्य देव को अर्ध्य दिया जाता है। इस दिन काली उरद की दाल और सफेद चावल की खिचड़ी, दही-चिवड़ा के साथ-साथ तिल के लड्डू व चावल की ढूढ़ी विशेष रूप से खायी जाती है। खिचड़ी पर्व पर बहन-बेटियों के घर खिचड़ी के रूप में अनाज,तिल लड्डू आदि भेजने का भी रिवाज है। खिचड़ी दान में दाल,चावल,नमक,आलू,गाजर व तिल आदि का यथा संभव दान देने की परम्परा है।
कहते हैं… खिचड़ी पर्व की धार्मिक मान्यता के बारे में कहते हैं कि इस दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर आते हैं यानि मकर राशि में प्रवेश करते हैं, जो सुख के आगमन का भाव उत्त्पन्न करता है।
खिचड़ी के दिन लोग पतंगबाजी करके इस पर्व को और रोमांचक बनाते हैं।