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सकट गणेश चौथ व्रत

सकट चौथ का व्रत महिलाएं अपने संतान की लम्बी उम्र और खुशहाल जीवन की कामना के लिए रखती हैं।

shwetambra by shwetambra
September 15, 2023
in तीज-त्यौहार, रीति-रिवाज
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sakat chauth
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सकट चौथ का व्रत महिलाएं अपने संतान की लम्बी उम्र और खुशहाल जीवन की कामना के लिए रखती हैं। इस व्रत को गणेश चौथ या तिलकुटा चौथ व्रत के नाम से भी जाना जाता है। माघ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को यह व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान श्री गणेश जी की पूजा की जाती है।

पूजन-व्रत की विधि…
सकट चौथ के दिन महिलाएं स्नान-ध्यान के बाद पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। इसके पश्चात शाम को गणेश जी की चौकी सजाकर चार बत्तियों का दीपक जलाकर विधि-विधान से पूजन किया जाता है। चौथ व्रत में चार फल, लड्डू, सिंघाड़े का हलुआ, तिल-गुड़ का पहाड़, पान व फूल-माला आदि अर्पित किया जाता है।कहीं-कहीं पर तिल-गुड़ के पहाड़ के स्थान पर तिल का भेड़ बनाकर उसे कुश से काटा जाता है।तिल-गुड़ से बनी इन कृतियों का वजन सवाई लगाकर रखा जाता है। इस व्रत-पूजा में दूब चढ़ाना आवश्यक माना गया है। यह व्रत चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही पूरा होता है, इसलिए चंद्रोदय के बाद अपनी एक लट को पकड़ कर नीचे की ओर देखते हुए तिल, फूल व गंगाजल युक्त जल से चार बार परिक्रमा करते हुए अर्घ्य दिया जाता है।अर्ध्य के पश्चात पारन करते हुए व्रत को पूर्ण किया जाता है।दूसरे दिन प्रातःकाल पुत्र द्वारा तिल-गुड़ के पहाड़ को काटा जाता है और प्रसाद के रूप में सभी को वितरित किया जाता है।
सकट चौथ व्रत कथा… 
भगवान श्री गणेश जी की पूजा करते समय पौराणिक सकट चौथ व्रत कथा को पढ़ा या सुना जाता है। कहते हैं कि सतयुग काल में राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार रहता था। कुम्हार के जीवन में एक समय ऐसा आया कि बर्तनों को पकानें की तमाम कोशिशों के बाद भी उसके बर्तन कच्चे रह जा रहे थे। उसने अपनी यह बात एक तांत्रिक को बताई। कुम्हार की इस समस्या के निदान हेतु तांत्रिक ने बताया कि किसी यदि आंवा में बर्तनों को पकाते समय किसी छोटे बच्चे की बलि दे दी जाय तो उसकी यह समस्या दूर हो सकती है। यह सुनकर कुम्हार आंवा लगाते समय एक बच्चे को पकड़कर आंवा में डाल दिया। वह दिन सकट चौथ का था। उधर दूसरी ओर काफी खोजने के बाद भी जब बच्चे की मां को उसका बेटा नहीं मिला तो उस माँ नें गणेश जी के सामने सच्चे मन से प्रार्थना की । इधर कुम्हार ने जब सुबह उठकर आंवा देखा तो वह यह देखकर दंग रह गया कि उसके सभी बर्तन तो पक गए लेकिन आंवा के अंदर बलि दिया गया बच्चा भी सुरक्षित था। इस घटना के बाद कुम्हार डर सा गया और किसी बड़ी अनहोनी को सोच वह राजा के दरबार पहुंच अपनी पूरी कहानी सुनाई। कुम्हार की बातों को सुनकर राजा ने बच्चे की मां को बुलवाया और उससे सारी बात पूंछी तो मां ने संकटों को दूर करने वाले भगवान श्री गणेश जी की पूजा और उसकी महिमा का वर्णन किया। मान्यता है कि तभी से महिलाएं अपनी संतान के खुशहाल भविष्य और उनकी लंबी आयु के लिए सकट चौथ का व्रत व पूजन को करने लगीं।
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